
''मोहक अनुभूति''....!
रूप है भी ओर नहीं भी, मात्र दृष्टि का आभास'
किन्तु नहीं है आंखे....
मुंह नहीं चेहरा भी नहीं, पर मुस्कराहट,
अपनी ओर बार बार बुलाती मुस्कराहट,
एक होने कों अकुलाती मुस्कुराहट, शब्दों के पार...
उन्मुक्त हंसी, तरल कर देती रोम रोम, भिगों देती है man
चारों ओर तरंग ही तरंग मोहक अनुभूति के स्पंदन''
धीरे धीरे हो जाते समहित अब केवल वह एक,
नहीं है कुछ भी शेष न खोना न पाना केवल बूंद का सागर हो जाना है...!
kya khona kya pana ....
ReplyDeletejeevan me jo sochta hai aadmi wo sab kuch to nehi paata aadmi.bas uske haath aata hai shuny...
kayoki har ek ko khona hai usmi me