Thursday, March 10, 2011


कृष्ण का मुरली से
दीप का ज्योति से
अटूट नाता है
बीज माटी बिना
कब पनप पता है
पत्र निरर्थक संदेश बिना
कोरा काग़ज़ बन जाता है
कुछ इन जैसा
रिश्ता निभाना
तुम लौट आना
ज्यों आती है
भोर संग भावुकता
स्पर्श से झंकार
उसी तरह तुम आना
तुम लौट आना
लाती है हवा ख़ुशबू
चिड़िया चोंच में तिनका जैसे
चाँद थामे
रश्मि का हाथ
तलैया में लाता है जैसे
मेरे लिए स्वयं को लाना
तुम लौट आना
गोधूलि बेला में
लौटते है सब अपने ठौर
पंछी घोसले का रुख करते हैं
सूरज भी
नींद को जाता है
थका हरा इनसान
रैन बसेरे में आता है
मेरे प्यार की पनाहों में
तुम चले आना
तुम लौट आना...!

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