Friday, March 11, 2011

चाँद सा उज्वल किरण हो''!


पूर्णिमा के चाँद सा उज्वल किरण हो,चहकते मनुहार हो तुम,
प्रीति यदि पावन हवन है,दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम!इस धरा से
व्योम तक तुमने उकेरी अल्पनाएँ,
छू रही हैं अंतरिक्षों को
तुम्हारी कल्पनाएँ।
चाँदनी जैसे सरोवर में करे अठखेलियाँ,
प्रेमियों के उर से जो निकलें वही
उदगार हो तुम!जोगियों का
जप हो तप हो, आरती तुम अर्चना,
साधकों का साध्य तुम ही
भक्त की हो भावना।
पतितपावन सुरसरि,कालिंदी तुम ही नर्मदा,
पुण्य चारों धाम का हो स्वयं ही
हरिद्वार हो तुम।हो न पावूंगी
उऋण मैं उम्र भर इस भार से,
पल्लवित, पुष्पित किया जो
बाग़ तुमने प्यार से। इस ह्रदय में तुम ही तुम हो,
तुम ही बंधू तुम ही प्रिय!जो बिखेरे अनगिनत रंग फागुनी
त्यौहार हो तुम।

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