Thursday, March 10, 2011


रोशनी हो हर घड़ी, अन्तर्दिशाएँ जगमगाएँ।
चेतना-आकाश में कोई, नया सूरज उगाएँ॥
हास अधरों पर, नयन में, सौम्यता के तीर्थ आएँ,
कार्य के प्रारूप प्रेरित, अंग प्रतिपल दीप्त पाएँ,
मौन में माधुर्य की सोई हुई स्फुरणा जागाएँ॥
चेतना-आकाश में कोई, नया सूरज उगाएँ॥
ज़िन्दगी में कर्ज़ कितने, आश्वास के, विश्वास के,
फ़र्ज़ कितने स्नेह के, आशीष के, अहसास के,
सहज सब स्वीकार हैं, हर साँस की कीमत चुकाएँ॥
चेतना-आकाश में कोई नया सूरज उगाएँ॥
शब्द के सुंदर झरोखे, सज रहे हों भाव-द्वारे,
मौन में भी महकते हों, चेतना के चित्र सारे,
मोक्षपथ के द्वार, सँवर की रचें नूतन ऋचाएँ॥
चेतना-आकाश में कोई नया सूरज उगाएँ॥

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