Friday, March 11, 2011

अमर प्रेम!


डूबते सूरज की लाली, मनो मदिरा से भरी प्याली,
अतृप्त प्यास ले झुका है आकाश, धरती ने पहनलिया दुल्हन का लिबास!
साँझ के झुरमुट में छिप के मिलन का रंग बिखरा जाये,
शर्मा कर कुछ घबराकर, संध्या की चादर की आड़ लेकर,
लाज की लाली लिए छुप गयी धरती, रजनी की ओढ़ सितारों जड़ी चुनरिया,
विचार कर तड़प उठा आकाश, टंक दिया चाँद को देकर प्रेम प्रकाश!
धरती पर बिखर गयी स्नेह की चांदनी.....
बजने लागी फिर मिलन की रागनी,
दूर एक दुसरे पर मोहित है मन,अमर प्रेम का कैसा ये अटूट बंधन...?

1 comment: