Friday, March 11, 2011
''स्मृतियाँ''!
तुम्हारे संग
कभी घंटों चुपचाप बैठकर
तो कभी घंटों बातें करके
सहज हो जाती हूँ मै,
और जब तुम हँसते हो,
तब खिल उठते
मेरे दिल के बाग में
हजार-हजार गुलाब एक साथ
तुमसे दूर हो कर
ये स्मृतियाँ शेष रह गई हैं
मेरे पास
तुम्हारी धरोहर बनकर
तुम्हारा
वो साथ बैठना
बातें करना,
दुखी होना हँसना
रूठना, मनाना
हर पल, हर क्षण
मुझे आभास कराता है
आज भी
तुम्हारे पास होने का
इसीलिए
बड़े जतन से सँभाला है मैंने
तुम्हारी इस धरोहर को
क्योंकि
इससे मिलते ही
मन आनंदित हो जाता है
उमंग-उत्साह के रंग में
मैं सराबोर हो जाती हूँ
पल भर के लिए
जीवन मेला-सा बन जाता है
और मैं
एकबारगी
फिर से
सहज हो जाती हूँ
उसी तरह
जिस तरह
कभी तुमसे मिल कर होती हूँ..!
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ati sunder hai mam
ReplyDeleteमुझे तेरी जुस्तजू ही नहीं आरजू भी है
ReplyDeleteकुम्द्नी को जो कर दे दीवाना तू ऐसी खुशबू है
रग रग के उस रब ने तुझे है बनाया
क्या हाल होगा उस भँवरे का जिसका दिल तुझ पे आया
इस रूप नंदनी को देख सारा जग है जगमगाया
देख इसे चाँद ने कहा एक चाँद जमीं पर है आया
ऐ हय-यौवन की मल्लिका में तुझ पे निसार हूँ
बस आख़िरी तमन्ना जीवन भर तुझको प्यार दूँ
किसको है पता वो जायेगा कहाँ
तुझे देखू बस देखू और जिन्दगी गुजर दो
वाह ! वाह ! वाह !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति :)
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteaap sabon ka tahe dil se shukriya !
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